Monday, 16 March 2015

सुनो मीता ..

सुनो मीता, 
सुनो मित्र 
कहनी अनकहनी बहुत कुछ है 
जो दबी है भीतर 
कभी ले लेती है आकार कहानी का 
कभी बन जाती है चिड़िया सी फुदकती कविता 
कभी उड़ जाती है पंख फैलाए 
तो कभी बिखर जाती है पानी की बूँद बनकर 
पनीले सपनों सी ,ओस की बूंदों सी 
बनी और छाई रह जाती हैं यादें 
सुनो मीता
सुनो मित्र 
कहनी-अनकहनी कहूंगी तुमसे 
सुनना और कहना तुम् भी 
जो मन में आए वो
आखिर ऐसे ही तो बढ़ेगी यात्रा 
तुम्हारे और मेरे सपनों की....

3 comments:

  1. बहुत सुन्दर..स्वागत है..
    यह बहुत पहले आना चाहिए था ..:)

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  2. :-) looking forward to much more
    Hindi font download karna hai

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  3. हाँ, कह-सुनकर ही ,
    आगे बढ़ेगी,
    यह यात्रा।
    हाँ ,ऐसे ही ,
    साझा करेंगे हम,
    अपने सपने,
    और मिल-जुलकर ,
    करेंगे उन्हें साकार।
    फिर और आगे बढ़ेगी ,
    यह यात्रा,
    सपनों की
    और हकीकत की भी।
    हाँ मीता,
    हाँ मित्र,
    यूँ ही कहते -सुनते,
    आगे बढ़ेगी ,
    यह यात्रा।
    बढ़ती ही,
    जाएगी निरंतर,
    हाँ मीता,
    हाँ मित्रा,
    हाँ, बस यूँ ही,
    आगे बढ़ती जाएगी ,
    यह यात्रा,
    होती जाएगी,
    सुगम,
    कहते सुनते,
    हाँ यूँ ही,
    हाँ , हाँ यूँ ही,
    मीता,
    कह -सुन कर,
    ही तो बाँट लेंगे,
    पीड़ायेँ,
    और अनवरत,
    जारी रख सकेंगे,
    यात्रा। हाँ मीता,
    हाँ, हाँ अवश्य सफल होगी,
    यह यात्रा,
    तुम्हारे और मेरे सपनों की...........

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